राजस्थान मे घोषित राजस्थान प्रशासनिक सेवा के परीक के परिणाम मे कई चयनित ऐसे हैं जिन्होने आरएएस के साथ-साथ जिंदगी की परीक्षा में भी अव्वल रहे। राजस्थान प्रशासनिक सेवा परीक्षा-2018 में चयनित इन युवाओं का संघर्ष सभी के लिए मिसाल बन गया है। बानसूर के देवेंद्र ने अंधता के बावजूद सफलता हासिल की। राजस्थान प्रशासनिक सेवा में जिले के अनेक प्रतिभाशाली युवाओं का चयन हुआ है।कोटकासिम में पंचर लगाने वाले के बेटे घनश्याम और खेड़ली की अंजू पिता की मौत के बाद आरएएस बने है।
परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर थी। बेबसी देख ढाणी के लोग परिजनों से कहने लगे- इसे गोवर्धन में छोड़ दो, वहां भीख मांग गुजारा कर लेगा। तब ठाना कि कुछ कर दिखाएंगे। पढ़ने के लिए ट्रैक्टरों में बजरी की ट्रोलिया भर पैसे जुटाए। एक दिन रेडियो सुनते वक्त नेत्रहीनों की संस्था का नंबर मिला। संस्था का जयपुर में दिव्यांग स्कूल था। वहां कंप्यूटर व ब्रेल लिपि सीखी। तब लगा कुछ कर पाएंगे। सबलपुरा में माला की ढाणी निवासी देवेन्द्र चौहान ने 2010 में अपनी दोनों आंखें एक हादसे में खो दी। देवेंद्र ने बताया- आंखों की रोशनी छिनी तो जिंदगी ही खत्म सी लगी। अंकिता चौहान व भाई नरेंद्र सिंह चौहान से किताबों की रिकॉर्डिंग करवाई। उन्हें सुन-सुनकर पढ़ाई की। इस बीच समाज में उपहास, ताने सुन कई बार हिम्मत टूटी, लेकिन निश्चय अटल था। चुपचाप जुटे रहे और आखिर आरएएस-2018 में दिव्यांग श्रेणी में चयन होकर दिखाया। देवेंद्र का कहना है कि उनका अंतिम लक्ष्य आईएएस बन कर सेवा करना है।
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